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Showing posts from September, 2017

रावण जब रणभूमि में मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे ले रहा था तब उसने श्री राम से कहा...

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रावण जब रणभूमि में मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे ले रहा था तब उसने श्री राम से कहा- "राम मैं तुमसे हर बात में श्रेष्ठ हूँ। जाति मेरी ब्राह्मण हैं, जो तुमसे श्रेष्ठ है। आयु में भी तुमसे बड़ा हूँ। मेरा कुटुम्ब तुम्हारे कुटुम्ब से बड़ा है।

दशहरा (विजयदशमी,आयुध-पूजा) विशेष...

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दशहरा  (विजयदशमी,आयुध-पूजा) विशेष... अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय दशमी या दशहरे के नाम से मनाया जाता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा...

#पद्य: सिंह की सवार बनकर रंगों की फुहार बनकर... तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ...

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तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आ ओ..... सिंह की सवार बनकर रंगों की फुहार बनकर पुष्पों की बहार बनकर सुहागन का श्रृंगार बनकर तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ...

#कविता: चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में... मैथिलीशरण गुप्त

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चारु चंद्र की चंचल किरणें... चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

#कविता: खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी... सुभद्रा कुमारी चौहान

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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी... सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

#कविता: मेरा नया बचपन.... सुभद्रा कुमारी चौहान

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मेरा नया बचप न... बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

कवी राहत इंदौरी जी की कविता: उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो ...

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उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो खर्च करने से पहले कमाया करो ...

डॉ. कुमार विश्वास की कविता: मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है तब तक मुझको जीना होगा...

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मै कवि हूँ ... सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी हर विवश आँख के आँसू को यूँ ही हँस हँस पीना होगा मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है तब तक मुझको जीना होगा

डॉ. कुमार विश्वास की कविता: कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है...

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कोई दीवाना कहता है .... कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !! मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

#कविता- तुम चले जाओगे और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे...

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विदा... तुम चले जाओगे पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे जैसे रह जाती है...

#प्रेरक कविता- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...हरिवंशराय बच्चन..!!

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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...।। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है..

#प्रेरक कविता- नर हो, न निराश करो मन को :: मैथिलिशरण उपाध्याय

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नर हो, न निराश करो मन को... कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो...

एक महिला से जब किसीने पूछा की ,"आप Working Woman हो,या Housewife ?

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एक महिला से जब किसीने पूछा की , "आप Working Woman हो,या Housewife ? तब, उसने जो जवाब दीया, सचमुच दिल को छु लेने वाला था...

आज़ का सुविचार: साथ रह कर जो छल करें, उससे बड़ा कोई...

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।। आज़ का सुविचार ।। साथ रह कर जो छल करें, उससे बड़ा कोई " शत्रु " नहीं हो सक्ता ... और, हमारे मुंह पर हमारी बुराइयां बता दे,

ओम् नमः शिवाय!! तांडव है और ध्यान भी वो है,अज्ञानी का ज्ञान भी वो है!!

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ना आदि,ना अंत उसका वो सबका,ना इनका - उनका ! वही शुन्य है,वही इकाय जिस के भीतर बसा शिवाय !

"Beautiful Lines" जो पिता के पैरों को छूता है, वो कभी गरीब नहीं होता...!!

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जो पिता के पैरों को छूता है            वो कभी गरीब नहीं होता। जो मां के पैरों को छूता है          वो कभी बदनसीब नही होता। जो भाई के पैराें को छूता है...

#जानना जरूरी है:: मैंने देखा है गाडी में सवार सभ्य लोगो को...

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।।   मैंने देखा है   ।।। मैंने देखा है गाडी में सवार सभ्य लोगो को सड़क पर गाय- भैस के आ जाने पर उन्हें दुत्कारते हुए, चरवाहे को हडकाते हुए और सुबह ग्वाले के पास जा गाय-भैस का दूध मांगते हुए । - मैंने देखा है समाज के बुद्धिजीवियों को गाय को घर के सामने से भगाते हुए और फिर ग्रहों की शांति के लिए उसी गाय को गुरूवार को गुड रोटी खिलाते हुए । - मैंने देखा है