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Showing posts from October, 2017

Poem: उस रोज़ "दिवाली" होती है...Us Roj Diwali Hoti Hai...

अतिशय सुंदर पंक्तियाँ... 💐💐 जब मन में हो मौज बहारों की चमकाएँ चमक सितारों की, जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों तन्हाई  में  भी  मेले  हों, आनंद की आभा होती है उस रोज़ "दिवाली" होती है ।        जब प्रेम के दीपक जलते हों        सपने जब सच में बदलते हों,        मन में हो मधुरता भावों की        जब लहके फ़सलें चावों की,        उत्साह की आभा होती है         उस रोज़ दिवाली होती है । जब प्रेम से मीत बुलाते हों दुश्मन भी गले लगाते हों, जब कहींं किसी से वैर न हो सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो, अपनत्व की आभा होती है उस रोज़ दिवाली होती है ।        जब तन-मन-जीवन सज जाएं        सद्-भाव  के बाजे बज जाएं,        महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की       मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,       तृप्ति  की  आभा होती  है        उस रोज़ "दिवाली" होती है ।                - यह कविता आप सबको समर्पित, दीपावली की शुभेच्छा निमित्त।। 🌹🙏🌹
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Diwali Special.... ❇Sanskrit: शुभ दीपावली । सर्वे भवान्तु सुखिनः Shubhah Deepavalihi.. Sarve bhavantu sukhinah ✴Telugu: Andariki Deepawali shubakankshalu ✳Tamil: 

चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपावली का त्यौहार अमावस...

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चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपावली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं । ************************ जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया ।

चल इस बार, कुछ ऐसी दिवाली मनाते हैं...

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इस दिवाली, चलो दिल से दिल मिलाते हैं। खोये हुऐ दोस्तों को, फिर ढूंढ़ आते हैं। सदियों से, रिश्तों पे पड़ी, धूल की मोटी परतें हटाते हैं... चल इस बार, कुछ ऐसी दिवाली मनाते हैं। मुरझाये चहेरों पर, रौनक ले आते हैं। हर और बस, मुस्कुराहटें फैलाते हैं। दिल-दिमाग की पूरी सफाई कर आते हैं। खुद से चल, इस बेखुदी को मिटाते हैं। चल इस बार, कुछ ऐसी दिवाली मनाते हैं। किसी अनजान शक्स को दोस्त बना आते हैं। पुराने दोस्तों के शिकवे मिटाते हैं। माँ-बाप से मिल, फिर आशीर्वाद पाते हैं। अपनों को, अपने ही लिये, थोड़ा सा मानते हैं। चल इस बार, कुछ ऐसी दिवाली मनाते हैं। वन-वास गयी, मासूमियत को घर ले आते हैं। अहम्, द्वेष, ईर्ष्या के पटाखे जलाते हैं। दिल में अच्छाई के दिए जलाते हैं। सब कुछ भूल के इस बार, दिल वाली दिवाली मानते हैं। .....Happy Diwali....

मिट्टी वाले दीये जलाना...अबकी बार दीवाली में...

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राष्ट्रहित का गला घोंटकर,               छेद न करना थाली में... मिट्टी वाले दीये जलाना...            अबकी बार दीवाली में... देश के धन को देश में रखना,               नहीं बहाना नाली में.. मिट्टी वाले दीये जलाना...           अबकी बार दीवाली में... बने जो अपनी मिट्टी से,             वो दिये बिकें बाज़ारों में... छुपी है वैज्ञानिकता अपने,                सभी तीज़-त्यौहारों में... चायनिज़ झालर से आकर्षित,                  कीट-पतंगे आते हैं... जबकि दीये में जलकर,            बरसाती कीड़े मर जाते हैं.. कार्तिक दीप-दान से बदले,                 पितृ-दोष खुशहाली में.. मिट्टी वाले दीये जलाना...            अबकी बार दीवाली में... मिट्टी वाले दीये जलाना...            अबकी बार दीवाली में... कार्तिक की अमावस वाली,                रात न अबकी काली हो.. दीये बनाने वालों की भी,               खुशियों भरी दीवाली हो.. अपने देश का पैसा जाये,           अपने भाई की झोली में.. गया जो दुश्मन देश में पैसा,            लगेगा रायफ़ल गोली में.. देश की सीमा रहे सुरक्षित,  

बचपन बाली दिवाली... Very Beautiful Lines by Gulzar...

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बचपन बाली दिवाली .... Bachpan Wali Diwali.... हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं।  चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस  पाते हैं दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं  .... दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं चवन्नी -अठन्नी  पटाखों के लिए बचाते हैं सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं .... बिजली की झालर छत से लटकाते हैं कुछ में मास्टर  बल्ब भी  लगाते हैं टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं दो-चार बिजली के झटके भी  खाते हैं चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं .... दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं बार-बार बस गिनते जाते है चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं .... धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं प्रसाद की  थाली   पड़ोस में  देने जाते हैं चलो इस दफ़े दिवाली घर

जानिये करवा चौथ मनाने के पीछे का कारण, महत्त्व एवं कथा...

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जानिये करवा चौथ मनाने के पीछे का कारण, महत्त्व एवं कथा... करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है...

क्या है करवा चौथ की प्राचीन कथा एवं व्रत की विधि, जानिए...

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क्या है करवा चौथ की प्राचीन कथा एवं व्रत की विधि, जानिए... व्रत की विधि सुबह स्नान कर अपने पति की लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य व अखंड सौभाग्य के लिए संकल्प लें। बिना कुछ खाए-पिए रहें। शाम को पूजन स्थान पर एक साफ लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान

दोस्तो दिल थाम कर पढना बहुत ही नायाब पेश कश की है देश के जवानो के नाम...

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दोस्तो दिल थाम कर पढना बहुत ही नायाब पेश कश की है देश के जवानो के नाम... आ जाओ मेरे सिपाही..... दीवाली का वादा था, अब होली पर तो आ जाना, तुम बिन क्या तीज त्योहार,बस बच्चों को है बहलाना । नही लगता है मन कहीं भी, थम गये हैं मेरे रात दिन, रुक गया है जैसे जीना, बस है साँसो का ताना बाना । थरथराते हैं मेरे हाँथ सजन,  जब छूती हूँ भेजे रुपये, खर्चने को मन करता नही, चूल्हा भी नही चाहती बुझाना। सहलाती रहती हूँ वो साड़ी, जो लाये थे पिछले सावन, पहनूंगी जब तुम आओगे, अभी तो ठीक है वही पुराना । कटती नही है मुझसे प्रियतम, ये लंबी लंबी राते , होते जो पास तो सो जाती,  लेकर बाँहों का सिरहाना । देकर मुट्ठी भर चाँदनी, भर गये अमावस आँचल में, बैरागन सी फिरती हूँ,  बस काम ख़तों को है दोहराना । बैठी हूँ राह देखती मैं ,आ जाओ मेरे सिपाही तुम, लहराते आना तिरंगा हाय, न इसमे लिपटकर आ जाना, मातृभूमि की रक्षा मे, दिया है मैने सब सुख अपना, पर कसम तुम्हे भवानी माँ, सिंदूर मेरा हर हाल बचाना।