क्या है करवा चौथ की प्राचीन कथा एवं व्रत की विधि, जानिए...
क्या है करवा चौथ की प्राचीन कथा एवं व्रत की विधि, जानिए...
व्रत की विधि
सुबह स्नान कर अपने पति की लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य व अखंड सौभाग्य के लिए संकल्प लें। बिना कुछ खाए-पिए रहें। शाम को पूजन स्थान पर एक साफ लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान
शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय व भगवान श्रीगणेश की स्थापना करें। पूजन स्थान पर मिट्टी का करवा भी रखें। इस करवे में थोड़ा धान व एक रुपए का सिक्का रखें। इसके ऊपर लाल कपड़ा रखें।
इसके बाद सभी देवताओं का पूजन कर लड्डुओं का भोग लगाएं। भगवान श्रीगणेश की आरती करें। जब चंद्रमा उदय हो जाए तो चंद्रमा का पूजन कर अर्घ दें। इसके बाद अपने पति के चरण छुएं व उनके मस्तक पर तिलक लगाएं। पति की माता अर्थात अपनी सास को अपना करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि सास न हों तो परिवार की किसी अन्य सुहागिन महिला को करवा भेंट करें।
करवा चौथ की प्राचीन कथा...
करवा चौथ की कथा इस प्रकार है कि एक बार द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण के लिए भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछा तो भगवान श्रीकृष्ण ने यह कथा सुनाई किए एक विद्वान ब्राह्मण वेद शर्मा के सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री ने विवाह उपरांत करवा चौथ का व्रत किया परंतु भूख-प्यास से पीडि़त होने के कारण उसके भाईयों ने कृत्रिम चंद्रमा दिखाकर उससे कृत्रिम चंद्रमा को अर्ध्य दिलवाकर भोजन करा दिया।
भोजन करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से व्याकुल उसने अन्न जल का त्याग कर दिया। उसी रात्रि में देवी इंद्राणी पृथ्वी पर विचरण करने आई। ब्राह्मण पुत्री ने देवी इंद्राणी से अपने दुखों का कारण पूछा। देवी इंद्राणी ने कहा कि तुमने वास्तविक चंद्रोदय के पूर्व ही अघ्र्य देकर भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई। अब पति को पुर्नजीवित करने के लिए विधिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करो। ब्राह्मण पुत्री ने व्रत कर अपने पति को पुन: प्राप्त किया।
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