स्टोरी: जरूर पढ़े कि कैसे भाई ने बहन के अटूट विश्वास की रक्षा की है...

रक्षाबंधन...
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"*हां हां बहन..मै आज शाम तक पक्का पहुंच जाऊंगा..वादा है मेरा..तुम्हारी राखी मेरी कलाई पर आज की तारीख में अवश्य बंधेगी.." उधर से श्याम की आवाज आरती के दिल को तसल्ली दे रही थी इधर से आरती ने भी कह दिया.."भैया..अगर तुम आज भी वक्त पर घर नही आए तो देख लेना फिर तुम्हारी बहन तुमसे कभी बात नही करेगी.." यह कहकर आरती ने फोन रख दिया..

आरती और श्याम शहीद जगमहेन्द्र के बेटी और बेटा थे। दोनों में असीम स्नेह था।
आरती एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी और श्याम बनना तो चाहता था इंजिनियर..लेकिन पिता जी के एक आतंकवादी हमले में सीमा पर शहीद होने के बाद देशसेवा की भावना के चलते श्याम सेना में भर्ती हो गया।

मां की तबीयत पिताजी के जाने के बाद खराब ही रहती थी और श्याम के सेना में जाने के बाद आरती ने भी निर्णय कर रखा था कि जब तक श्याम शादी नहीं कर लेता वह भी शादी नहीं करेगी

क्योंकि वह मां को अकेला नहीं छोड़ सकती थी। पिछले तीन साल से उसने श्याम की कलाई पर अपने हाथों से राखी नही बांधी थी हर साल रक्षाबंधन पर किसी ना किसी वजह से श्याम को छुट्टी नही मिल पाती और भाई की कलाई को अपने हाथों से सजाने का बहन का सपना अधूरा ही रह जाता था।

हां..डाक के जरिए वह राखी भिजवा तो देती थी लेकिन मन को वो तसल्ली नहीं होती थी। अबकी बार काफी दिन पहले से ही उसने श्याम से वादा ले रखा था कि रक्षाबंधन के दिन वह घर आकर उससे  अपनी कलाई पर राखी बंधवाएगा।

सुबह से दोपहर और अब शाम हो चुकी थी। श्याम का कोई फोन भी नहीं आया और श्याम भी नही आया..ना जाने कब भाई की राह तकते तकते बहन की आंख लग गई..

"आरती ओ आरती..ला बहन जल्दी से राखी बांध दे..जंग तो दुश्मन से भी जारी है पर बहन को दिए वचन को भी तो निभाना जरूरी है

"ला जल्दी से राखी बांध दे और हां खीर जरूर खिलाना काफी दिन हो गए तुम्हारे हाथ की खीर नही खाई..

" आरती ने बड़े प्यार से भाई के माथे पर तिलक लगाया..राखी बांधी और खीर खिलाई..श्याम ने कहा.

."बहन जल्दी में था इसलिए तुम्हारा तोहफा तो नही ला पाया..हां जल्दी ही तुम्हें बहुत बड़ा तोहफा दूंगा..यह कहकर श्याम उठकर जाने लगा तो आरती ने कहा..

"इतनी जल्दी भी क्या है भैया..मां से तो मिलकर जाओ..मां ऊपर कमरे में है.."नहीं नहीं बहन..अभी तो मुझे तुमसे किए वादे को निभाना था मां से कहना मैं फिर कभी मिलने आऊंगा यह कहकर श्याम तेज कदमों से चलते हुए घर से बाहर निकल गया...

ट्रिन..ट्रिन..ट्रिन..ट्रिन की आवाज से अचानक आरती की आंख खुली तो देखा ड़ोरबैल बज रही थी घड़ी की तरफ नजर घुमा कर देखा तो सात बजे रहे थे। बाहर रोशनी दिख रही थी।

उसने जल्दी से दरवाजा खोला तो मिलिट्री की गाड़ी देखकर अच्चमभित रह गई भैया तो ट्रेन से आते हैं फिर आज ये गाड़ी कैसे आई है उसकी निगाह उनके हाथों पर गई तो दिल को धक्का सा लगा।

आठ दस जवान श्याम के मृत शरीर को लेकर उसके दरवाजे पर खड़े थे उनमें से एक ने आगे बढ़कर पूछा.

."बहन..आरती आपका ही नाम है.. सदमें की अवस्था में ही आरती ने हां में सर हिला दिया.."बहन..कल दोपहर की ट्रेन से ही श्याम घर आने वाला था बड़ा खुश था वह..कह रहा था बहना से वादा किया है आज उसके हाथों से ही कलाई पर राखी बंधवाऊंगा..

लेकिन एक जरूरी आपरेशन के कारण उसकी छुट्टी कैंसल कर दी गई और उसे एक जरूरी मिशन पर भेज दिया। मैं भी श्याम के साथ ही था घुसपैठियों से जोरदार मुठभेड़ हुई.. हम चार लोग थे और वह छह थे..लेकिन श्याम ने अकेले ही तीन का काम तमाम कर दिया।
शाम सात बजे से चले इस आपरेशन को हमने आठ बजे तक निपटा तो दिया लेकिन अफसोस इस आपरेशन के दौरान हमने अपने होनहार सिपाही और मित्र श्याम को खो दिया..उसे चार गोलियां लगी और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया..यह कहकर उसने श्याम के मृत शरीर को आंगन में रख दिया और तिरंगे को उसके मुंह से हटा दिया..

आरती यह सुनकर भागकर अंदर गई जहां उसने भाई की पूजा की थाली रखी थी वहां पूजा की थाली में रखी दो राखियों में से एक ही दिख रही थी..तिलक के लिए रखी रोली भी गीली थी..और यह क्या खीर की कटोरी भी आधी खाली थी। वह भागकर श्याम के मृत शरीर के पास आई और भाई की कलाई टोली तो उस पर वह राखी बंधी थी..तिलक भी लगा था और मुंह पर खीर खाने के भी निशान थे वह श्याम के मृत शरीर से लिपट कर रोने लगी ये कैसा रक्षाबंधन की राखी का वादा था जो उसका भाई जान गंवाकर भी निभाने आया था वह समझ नहीं पा रही थी वह समझ पा रही थी एक सैनिक..एक भाई के वादे की अहमियत को जिस वादे को पूरा करने के लिए भारत माता का एक वीर सिपाही अपनी जान गंवाकर भी पूरा कर गया वह समझ नही पा रही थी कि उसने जो सुना है उस पर यकीन करें या जो उसने देखा है उस पर यकीन करे..कि कैसे एक भाई ने मृत होकर भी बहन के अटूट विश्वास की रक्षा की है..*

बहनों ,,
एक राखी उनके लिए भी रखना थाली मे,,
जिन्होंने जान गंवायी हमारी ही रखवाली में।।
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