संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवन गाथा...!

भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर
नमस्कार! रीडर्स,
         आज की पोस्ट में आपको संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जीवन का संक्षिप्त परिचय पढ़ने को मिलेगा। हमें उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आएगा।
                   भारतीय संविधान के निर्माता तथा आधुनिक भारत के मनु के नाम से विख्यात डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू छावनी मैं सूबेदार रामजी के घर में हुआ था।
जब वह 5 वर्ष के थे, तब...
इनकी माता का देहांत हो गया। चाची मीराबाई ने उनका पालन-पोषण बड़े लाड प्यार से किया।
              भीमराव अंबेडकर के मन में बचपन से ही पढ़ने की तीव्र इच्छा थी। पढ़ाई-लिखाई में गहरी रुचि वह लगन देखकर उनके पिताजी ने उन्हें सतारा के एक विद्यालय में दाखिल करवा दिया। बचपन में शिक्षा प्राप्ति के समय उन्हें स्कूल में जातीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा। सन् 1905 में रामाबाई नामक कन्या से इनकी शादी हो गई।
             सन् 1907 में एलफिंस्टन कॉलेज से हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद वे बड़ौदा के महाराजा सियाजी राव गायकवाड से छात्रवृत्ति प्राप्त कर उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया गए। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए. तथा पी.एच.डी. की। उनके शोध पत्र का विषय था― भारत में जातिवाद । इसे काफी सराहा गया। बाद में वे लंदन गए और वहां से बार एट लॉ किया। विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले व महार जाति के पहले व्यक्ति थे। महाराज गायकवाड़ ने उनको सेना में सचिव नियुक्त किया वहां जातिगत भेदभाव से क्षुब्ध होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। मुंबई के कॉलेज में उन्होंने प्राध्यापक के रूप में भी कुछ दिन कार्य किया वह पुनः पढ़ाई हेतु लंदन चले गए। सन 1923 में भारत लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारंभ की। सन 1920 तथा 1927 में उन्होंने मुक्त नायक तथा बहिष्कृत भारत नामक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।
             दलित जाति में जन्म लेने के कारण बचपन से ही सामाजिक अनुभव, शिक्षा और सेवाकाल की घटनाओं ने उनके मन में विद्रोह की भावना को जन्म दिया। उन्होंने ही संकल्प किया कि छुआछूत को जड़ से उखाड़ कर ही दम लेंगे। दलित वर्ग की समस्याओं पर लोगों को संगठित करने तथा उनके निराकरण के लिए संघर्ष करने के उद्देश्य से 20 जुलाई, 1924 को उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। शोषित और वंचित वर्गों की समस्याएं हल करना इस सभा का मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने अपने कार्यों और विचारधारा से भारत के शोषित और वंचित वर्गों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने ना तो किसी प्रकार के विशेष संगठन की योजना बनाई और न ही उन्हें कोई समर्थन देने वाला प्रतीत होता था। उन्होंने भारत के दबे पिछड़े वर्ग में जागृति का ऐसा संदेश पहुंचाया, जिससे वह अपने आप को समझने में समर्थ हो सके। वह समाज में उन्हें समानता अधिकार दिलाना चाहते थे।
          उनकी सामाजिक सेवाओं का सम्मान करते हुए 1927 में उन्हें बंबई विधान परिषद का संबंध सदस्य मनोनीत किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने शासन तथा जनता के समक्ष दलित समाज की समस्याओं तथा उनकी अन्यायपूर्ण स्थिति को ध्वनित किया। दलितोद्धार कार्यों के संबंध में डॉक्टर अंबेडकर गांधी जी के संपर्क में आएं। अपना पक्ष रखने के लिए वे सन 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गए। इस बीच 27 मई 1935 को उनकी पत्नी रामाबाई का देहांत हो गया, जिससे वह बहुत दुखी हो गए। उन्होंने सन 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की। इस पार्टी ने सन 1935 में मुंबई विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर अपना अधिकार किया। विधानसभा में विपक्ष के नेता के रुप में अनेकानेक सुधारक कानून बनवाएं ।जुलाई, 1942 में श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में विधि सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया।
    
              15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होने पर भी संविधान सभा के सदस्य चुने गए। भारतीय संविधान का प्रारूप उन्हीं की अध्यक्षता में तैयार हुआ, इसी कारण उन्हें आधुनिक भारत के मनु की संज्ञा दी गई। संविधान में उन्होंने तथाकथित अछूतों को समानता का अधिकार दिलाया। भारत की एकता और अखंडता के लिए उन्होंने कई बातें संविधान में सम्मिलित कराई।
          डॉक्टर अंबेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में विधि मंत्री बनाए गए। वह भारत के पुराने कानून में कई सुधार करना चाहते थे। सितंबर, 1995 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हिंदू कोड बिल के कुछ प्रावधानों पर मतभेद होने से उन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
  
               वह सरकार से अलग होकर पूरी शक्ति से समाज सेवा एवं दलितोद्धार कार्य में जुट गए। अत्यधिक श्रम और कष्ट के कारण उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। उनकी पहली पत्नी का कई साल पहले ही निधन हो चुका था इसलिए 1948 में उन्होंने लक्ष्मी सविता नामक महिला से दूसरा विवाह किया। वह चिकित्सक थीं। इस कारण अंबेडकर को काफी सहायता मिली। 1956 में काठमांडू में हुए विश्व बौद्ध सम्मेलन मैं उन्हें आधुनिक बुद्ध की उपाधि से सम्मानित किया गया। लोग उन्हें देवता की तरह पूजते थे। वह जहां भी जाते 'जय भीम' के नारे से आकाश गूंज उठता था।
              डॉक्टर अंबेडकर ने 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की तथा अपने इलाकों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। वे उच्च कोटि के विद्वान तथा चिंतक थे। उन्होंने कई समाचार पत्रों का प्रकाशन एवं संपादन किया। उनके द्वारा लिखित प्रमुख ग्रंथ और लेख हैं― शूद्र कौन थे, भाषाई राज्यों पर विचार, थॉट्स ऑन पाकिस्तान, दी बुद्ध एंड हिज़ धम्म।
6 दिसंबर, 1956 को उनका स्वर्गवास हो गया। सच्चे अर्थों में वे एक महामानव देशभक्त तथा मानवतावादी समाज सुधारक थे। उन्हीं के प्रयासों से ही सभी को कानून के समक्ष समानता का अधिकार मिला। और देश को छुआ-छूत के अभिशाप से छुटकारा मिला। हमारी आने वाली पीढ़ियां उनके महान कार्यों का स्मरण कर उनके महान कार्यों के गौरव का अनुभव करेंगे। 14 अप्रैल, 1990 को मरणोपरांत डॉक्टर अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसे उनकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मी सविता ने प्राप्त किया।


जो व्यक्ति भाग्य के सहारे चलता है, वह आलसी होता है। व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। भाग्य बनता है― अटूट परिश्रम से, भाग्य बनता है― अच्छे कर्मों से और भाग्य साथ देता है― आगे बढ़ने वाले व्यक्ति का
                                                  ―डॉ. भीमराव अंबेडकर

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